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दिल्ली: एमसीडी ऑडिट में करोड़ों के घपले का खुलासा, बकाया वसूली में भी भारी लापरवाही

एकीकृत नगर निगम बनने के पहले वर्ष और उससे पहले तीनों नगर निगम की ऑडिट रिपोर्ट ने वित्तीय अनियमितताओं और लापरवाही की परतें खोल दी हैं। रिपोर्ट बताती है कि संपत्ति कर से लेकर इंजीनियरिंग, भवन, स्वास्थ्य, पर्यावरण प्रबंधन और विज्ञापन तक लगभग हर विभाग में करोड़ों रुपये की हानि हुई है। रिपोर्ट में बताया गया है कि संपत्ति कर विभाग में गलत कवर्ड एरिया, ऑक्यूपेंसी और उपयोग फैक्टर लागू करने से सात मामलों में 2.10 करोड़ रुपये का कर कम जमा किया गया। इसके अलावा 12 मामलों में कर और ब्याज की गैर-वसूली से 2.89 करोड़ रुपये का नुकसान हुआ। पुराने बकाए की वसूली में भी भारी लापरवाही सामने आई है।

रिपोर्ट के अनुसार, वर्ष 2004-05 से लंबित 2.44 करोड़ रुपये का संपत्ति कर और 2.51 करोड़ रुपये का ब्याज अब तक वसूल नहीं हो सका। इतना ही नहीं, 3.24 करोड़ रुपये के अस्वीकृत चेकों पर भी निगम ने कोई कार्रवाई नहीं की। रिपोर्ट में इंजीनियरिंग विभाग पर सबसे ज्यादा सवाल उठे हैं। यहां कई कार्यों के निष्पादन पर संदेह जताया गया है। नौ कार्यस्थलों पर रेडी मिक्स कंक्रीट के कार्य या तो सामग्री की प्राप्ति से पहले दिखाए गए या फिर लंबे अंतराल के बाद दर्ज किए गए। इससे 1.87 करोड़ रुपये के खर्च पर सवाल खड़े हुए।

पांच कार्यों में अनुमानों और वास्तविक निष्पादन में भारी अंतर के बावजूद बिना अनुमोदन 2.34 करोड़ रुपये का भुगतान कर दिया गया। जबकि 42 कार्यों में चालान और टिकट के बिना ही ठेकेदारों को 3.05 करोड़ रुपये जारी किए गए। वहीं, 20 कार्यों में गुणवत्ता जांच सुनिश्चित किए बिना 1.64 करोड़ का भुगतान हुआ। 139 कार्यों में अमान्य नमूनों को स्वीकार करने पर 86.04 लाख रुपये खर्च किए गए। इतना ही नहीं, अनिवार्य थर्ड पार्टी क्वालिटी ऑडिट के बिना ही 9.76 रुपये करोड़ का भुगतान जारी किया गया। नालों की बहाली में भी 1.85 करोड़ रुपये का भुगतान एनबीसीसी को किया गया जबकि वास्तविक कार्य मात्र एक करोड़ का था।

भवन विभाग में 37 संपत्ति मालिकों ने फ्लोर एरिया रेश्यो, परिवर्तन और पार्किंग विकास के लिए वन टाइम शुल्क कम जमा किया, जिससे 8.87 करोड़ रुपये की हानि हुई। एक मामले में कॉलोनी की गलत कैटेगरी लगाने से 12.59 लाख रुपये का नुकसान हुआ। इसके अलावा, जो निजी हाउसिंग सोसाइटियों और अपार्टमेंट परिसर एमसीडी के पास निहित ही नहीं थे और उनमें 75.27 लाख रुपये के कार्य कर दिए गए।

पर्यावरण प्रबंधन सेवा विभाग की रिपोर्ट और चौंकाने वाली है। ठोस अपशिष्ट प्रबंधन उप-नियमों को लागू न करने से दक्षिण और सेंट्रल जोन 155.12 करोड़ रुपये का न्यूनतम राजस्व भी वसूल नहीं पाए। जीएनसीटीडी को दी गई हाउसकीपिंग और सफाई सेवाओं पर किया गया 3.37 करोड़ रुपये का खर्च भी बेकार चला गया। गाजीपुर लैंडफिल पर बायो-माइनिंग के लिए डीपीसीसी से मिले 4.92 करोड़ रुपये का उपयोग नहीं किया गया। नजफगढ़ जोन में ठेका प्रक्रिया का पालन न करने से 1.02 करोड़ रुपये का अतिरिक्त व्यय हुआ और ठेकेदार को 2.05 करोड़ रुपये का लाभ पहुंचाया गया।

दिल्ली परिवहन अवसंरचना विकास निगम लिमिटेड और टीआईएमडीएए से निगम का 122.39 करोड़ रुपये का राजस्व हिस्सा और ब्याज वसूल ही नहीं हुआ। लाइसेंसिंग विभाग ने संशोधित शुल्क संरचना को ऑनलाइन अपलोड करने में 25 दिन की देरी कर दी, जिससे 3.01 करोड़ का नुकसान हुआ। कर्मचारियों का ईपीएफ योगदान देर से जमा करने से भी 36.47 लाख रुपये का टालने योग्य व्यय हुआ।

स्वास्थ्य विभाग में मातृत्व एवं बाल कल्याण केंद्र के निर्माण पर नौ साल पहले 1.74 करोड़ रुपये खर्च किए गए, लेकिन सुविधा अब तक चालू नहीं हो सकी। वहीं तीन अस्पतालों ने बिजली लोड का अधिक अनुमान लगाकर 51.85 लाख रुपये का टालने योग्य खर्च कर दिया। सामुदायिक सेवा विभाग ने जीएसटी अधिनियम का पालन नहीं किया, जिससे 78.82 लाख रुपये की देनदारी बनी।

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