जीवनशैली

मेंटल हेल्थ से जुड़ी समस्याओं के लिए एआई का इस्तेमाल कितना सही

कुछ दिनों पहले की बात है, एक क्रम में ऐसी जानकारियां लेने लगा, जो अमेरिकी किशोर एडम रेनी ने फंदा लगाकर आत्महत्या कर ली, उसने कोई नोट नहीं छोड़ा था । इसलिए, हर कोई इसके पीछे के कारणों को जानना चाह रहा था। दरअसल, बीते कुछ महीनों से एडम स्कूल जाने के बजाय आनलाइन पढ़ाई कर रहा था और स्कूल वर्क के लिए वह चैटजीपीटी 4ओ का प्रयोग करने लगा था।

अचानक हुए इस हादसे के बाद उसके पिता मैट रेनी को लगा कि शायद फोन से एडम की मौत से जुड़े राज मिल जाएं। इसी दौरान एआई के साथ हुए एडम के संवाद पर नजर गई, जहां वह फांसी लगाने से जुड़े सवाल पूछ रहा था। हालांकि, चैटजीपीटी उसे परिजनों के साथ अपनी समस्या साझा करने के लिए कहता रहा। लेकिन, एडम ने इस तरह के सेफगार्ड को भी पार करने का तरीका सीख लिया था और वह एक कहानी के लिए आइडिया मांगने के क्रम में ऐसी जानकारियां लेने लगा, जो उसकी मौत का ही कारण बनीं।

दरअसल, शुरुआत में ही हर चैटबॉट को ज्ञान के भंडार के रूप में देखा जाने लगा, जो नई-नई जानकारियां दे सकता था, लिखने में मदद कर सकता था। पर, आज चैटबॉट बहुत आगे जा चुके हैं, वे पर्सनल असिस्टेंट या थेरेपिस्ट के तौर पर बेहद निजी संवाद करने लगे हैं।

ये कितने उपयोगी हैं, यह बड़ा ही अनसुलझा सवाल है। ओपनएआई और एमआइटी का एक सीमित अध्ययन बताता है कि प्रतिदिन घंटों एआई चैटबॉट का प्रयोग करने से लोग अकेलापन या सामाजिक अलगाव महसूस करने लगते हैं। टेक्नोलाजी अब मेनिया या साइकोसिस का कारण बनने लगी है। हालांकि, आत्महत्या या हिंसक बर्ताव जैसे मामले बहुत ही असामान्य होते हैं।

एआई थेरेपिस्ट नहीं है

चैटबॉट से आप मदद मांगेंगे तो आपको सहानुभूति तो मिल जाएगी, लेकिन मदद नहीं मिलेगी, यह तय मानिए। एआई की एक सीमा हैं, उसके बाहर यह खतरनाक रूप ले सकता है। एआई चैटबॉट को लेकर विशेषज्ञों का एक पक्ष इसकी निगरानी की मांग करने लगा है, तो वहीं दूसरा तर्क है कि अगर एआई और यूजर्स के संवाद पर नजर होगी, तो यह निजता के अधिकारों का उल्लंघन होगा।

ओपनएआई की मानें तो यूजर के अनुरोध पर कंपनी एआई माडल की परफार्मेंस शिकायतों का निवारण कर सकती है। लार्ज लैंग्वेज माडल अक्सर मैथ्स और कोडिंग में बेहतर प्रदर्शन करते हैं, वे टेक्स्ट और वास्तविक प्रतीत होने वाले वीडियो भी तैयार कर सकते हैं, पर वे इंसान की जगह नहीं ले सकते हैं, इसे हर यूजर को स्वीकार करना पड़ेगा।

चैटबॉट का दावा हमेशा सही नहीं होता

कोई चैटबॉट भले ही मानसिक सेहत के लिए टिप्स और उपाय बताए, लेकिन वह पेशेवर मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ नहीं बन सकता। एक पेशेवर निजता जैसे नियमों का जिम्मेदारी से पालन करता है। आपकी बातचीत हमेशा दो लोगों के बीच ही रहती है।

चैटबॉट भी ऐसा करेंगे, इसकी कोई गारंटी नहीं ले सकता। एआई का डिजाइन ही आपको व्यस्त रखने के लिए है, ना कि आपकी देखभाल करने के लिए। यही कारण है कि जब आप चैटबॉट से बात करते हैं, तो आप उसकी प्रतिक्रिया से आकर्षित होने लगते हैं। दूसरा, चैटबॉट की कोई निजी जिंदगी नहीं है और उसके पास अन्य ग्राहक या शेड्यूल नहीं है, इसलिए वह हर समय आपसे बातचीत के लिए तैयार रहता है।

आपकी गलती को भी सही मान सकता है चैटबॉट

चूंकि एआई डाटा से ही प्रशिक्षित होता है, ऐसे में कई बार वह गलत जानकारियों पर विश्वास कर लेता है। यहां तक कि यूजर कोई तथ्यात्मक तौर पर गलत जानकारी दे रहा है, तो उसे भी स्वीकार कर सकता है। स्टेनफोर्ड यूनिवर्सिटी के एक अध्ययन में स्पष्ट है तो थेरेपी चैटबॉट आपकी चापलूसी भी कर सकता है, जो कि बेहद हानिकारक है। जबकि मानसिक स्वास्थ्य देखभाल की पूरी प्रक्रिया सपोर्ट और कन्फ्रंटेशन पर टिकी होती है। यह चापलूसी के बिल्कुल विपरीत मामला है।

बातचीत करना ही थेरेपी नहीं एआई आपसे बात करते हुए कभी थकेगा नहीं, इसका मतलब यह नहीं है कि बात करके वह हर समस्या का हल निकाल देगा। उसे हर तरह के संदर्भ और परिस्थिति का ज्ञान नहीं है। हां, भविष्य में एआई थेरेपिस्ट के कार्यों में उपयोगी हो सकता है, जिससे उपचार की सहजता बढ़ेगी।

एआई से संवाद की हो सीमाएं

जसप्रीत चिंद्रा (सीईओ, एआई एंड बियान्ड) बताते हैं कि जरूरत होने पर विश्वसनीय इंसान को खोजें- अगर अकेलापन, तनाव या कोई अन्य मानसिक समस्या है, तो पहला उपाय इंटरनेट नहीं, बल्कि थेरेपिस्ट, साइकोलाजिस्ट, साइकियाट्रिस्ट जैसे प्रशिक्षित पेशेवर होने चाहिए। वे आपको आसानी से उलझनों से निकाल सकते हैं। इसके अलावा हेल्पलाइन नंबर आदि की मदद ली जा सकती है।

चैटबॉट का दायरा समझें- कुछ मानसिक स्वास्थ्य पेशेवरों की तरफ से खास तरह के चैटबॉट की सुविधा दी जाती है, जो आपको गाइड कर सकता है, जरूरत होने पर सामान्य चैटबॉट के बजाय उसी का प्रयोग करना चाहिए।

एआई की बातें हमेशा सही नहीं होती- जब भी जेनरेटिव एआई से संवाद करे तो खासकर जब बात सेहत से जुड़ी हो, तो आश्वस्त हो लें वह इंसान नहीं है, बल्कि प्रायिकता और प्रोग्रामिंग पर आधारित टूल है, जो आपको ना सही सलाह दे सकता है और ना ही सही जानकारी।

तकनीक का हो सतर्कता व जिम्मेदारी से उपयोग

बच्चों के जीवन में एआई का प्रवेश इतनी तेजी से हो रहा है कि उसे हम नियंत्रित करने में असमर्थ हैं। यह क्रिएटिविटी और लर्निंग में उपयोगी तो है, पर अत्यधिक प्रयोग चिंता और अवसाद पैदा कर रहा है, इसलिए पैरेंटल कंट्रोल और डिस्ट्रेस अलर्ट जैसी सुविधाएं महत्वपूर्ण हैं।

हमें समझना होगा कि पैरेंटल कंट्रोल सेंसरशिप नहीं है, बल्कि परिवारों में स्वस्थ डिजिटल सीमाएं तय करने के लिए है, ताकि कोई बच्चा एआई का प्रयोग अपने विकास के लिए करे, ना कि नुकसान के लिए। डिस्ट्रेस अलर्ट शुरुआती चेतावनी प्रणाली है, जो उदासी, तनाव या असुरक्षित बातचीत होने पर अलर्ट करता है। इन टूल्स के साथ अभिभावकों की भागीदारी, स्कूल का मार्गदर्शन भी आवश्यक है। एआई का प्रयोग एक उपयोगी सहायक के रूप में ही करना चाहिए।

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