कार्यवाहक अधिकारियों के भरोसे चल रहा यूपी का आयुर्वेद विभाग

उत्तर प्रदेश में आयुर्वेद के विकास के लिए लगातार रणनीत्ति बन रही है, लेकिन कार्यवाहक अधिकारियों का नेतृत्व इसमें रोड़ा बना है। हालत यह है कि निदेशक से लेकर 41 क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी तक कार्यवाहक हैं। ये पद चिकित्साधिकारियों की प्रोन्नति से नियमित होने हैं।
इसके लिए मुख्य सचिव तक आदेश दे चुके हैं। बावजूद इसके नतीजा सिफर है। ऐसे में न सिर्फ प्रशासनिक व्यवस्था ध्वस्त है बल्कि चिकित्सालयों का कामकाज भी प्रभावित हो रहा है। प्रदेश में आयुर्वेद विभाग का मुखिया निदेशक होता है। यह पद लंबे समय से खाली चल रहा है।
इन दिनों निदेशक का कार्यभार महानिदेशक आयुष वी चैत्रा के पास है। उनके पास आयुष मिशन निदेशक की भी जिम्मेदारी है। निदेशक की जिम्मेदारी निभा रहे अधिकारी के पास तीन पदों का दायित्त्व होना, अपर निदेशक पद खाली होने और उपनिदेशक के तीन में से दो पद खाली होने का नतीजा है कि निदेशालय बेपटरी है। इसी तरह जिला स्तर पर आयुर्वेद विभाग का मुखिया क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी होता है। यह पद आयुर्वेदिक चिकित्साधिकारियों की प्रोन्नति से भरा जाता है। इसके 59 पद हैं। प्रदेश में 75 जिले हैं। ऐसे में वाराणसी के क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी के पास भदोही और चंदौली का भी कार्यभार होता है।
कुछ ऐसी ही व्यवस्था अन्य स्थानों पर भी है। प्रोन्नति के लिए वरिष्ठता सूची 2012 में बनी। इसी सूची से वर्ष 2023 में कुछ चिकित्साधिकारियों की प्रोन्नति हुई, लेकिन उसके बाद से प्रोन्नति प्रक्रिया बंद है। एक के बाद एक क्षेत्रीय आयुर्वेदिक यूनानी अधिकारी सेवानिवृत्त हो रहे हैं। प्रदेश के 75 जिलों में आगरा, सुल्तानपुर और शाहजहांपुर में यूनानी विभाग की ओर से क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी तैनात किया गया है। 16 जिलों में नियमित क्षेत्रीय आयुर्वेदिक एवं यूनानी अधिकारी तैनात हैं। शेष 41 पद खाली हैं। इन पदों पर कार्यवाहक से काम चलाया जा रहा है।




