जीवनशैली

तनाव और वायु प्रदूषण से बढ़ रहा स्ट्रोक का खतरा

कभी स्ट्रोक को केवल बुजुर्गों से जुड़ी मेडिकल इमरजेंसी माना जाता था, लेकिन अब हालात बदल चुके हैं। डॉक्टरों का कहना है कि अब स्ट्रोक तेजी से युवाओं को भी अपनी चपेट में ले रहा है और इसकी वजह सिर्फ उम्र नहीं, बल्कि तनाव, खराब जीवनशैली और बढ़ता प्रदूषण है।

हर साल बढ़ रहे मामले

अंतरराष्ट्रीय जर्नल ऑफ स्ट्रोक में प्रकाशित हालिया रिपोर्ट बताती है कि भारत में हर साल करीब 15 लाख लोग स्ट्रोक का शिकार होते हैं। लेकिन इनमें से केवल चार में से एक मरीज ही ऐसे अस्पताल तक पहुंच पाता है, जो स्ट्रोक के इलाज के लिए पूरी तरह तैयार हो। इसका मतलब है कि लाखों लोगों को समय पर सही इलाज नहीं मिल पाता- जबकि स्ट्रोक के इलाज में “गोल्डन आवर” यानी शुरुआती एक घंटे की भूमिका बेहद अहम होती है।

तनाव और वायु प्रदूषण हैं मुख्य कारण

विशेषज्ञ बताते हैं कि आज के युवा काम के दबाव, असंतुलित खानपान और नींद की कमी से जूझ रहे हैं। लंबे समय तक बैठकर काम करना, फास्ट फूड पर निर्भर रहना और लगातार स्क्रीन पर नजरें टिकाए रखना शरीर में तनाव और उच्च रक्तचाप को बढ़ा देता है, जो स्ट्रोक के सबसे बड़े कारणों में से एक है।

इसके साथ ही, वायु प्रदूषण स्थिति को और बिगाड़ रहा है। गुरुग्राम के पारस हेल्थ की वरिष्ठ न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. एम.वी. पद्मा श्रीवास्तव बताती हैं कि महीन कण पदार्थ यानी PM 2.5 का लगातार संपर्क शरीर में सूजन और रक्त वाहिकाओं को नुकसान पहुंचाता है। दिल्ली जैसे शहरों में तो यह स्तर डब्ल्यूएचओ की सीमा से 10 से 15 गुना अधिक पाया जाता है। ऐसे माहौल में, जिन लोगों को हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज या हृदय रोग जैसी दिक्कतें हैं, उन्हें स्ट्रोक का खतरा कई गुना बढ़ जाता है।

स्ट्रोक की पहचान में एआई मददगार

हालांकि, तकनीक की मदद से अब स्ट्रोक की पहचान और इलाज पहले से कहीं तेज हो गया है। महाजन इमेजिंग एंड लैब्स के संस्थापक डॉ. हर्ष महाजन के अनुसार, आज एआई की मदद से डॉक्टर बहुत छोटे स्तर पर भी बदलाव पकड़ सकते हैं। एआई आधारित इमेजिंग सिस्टम अब मस्तिष्क में बनने वाले सूक्ष्म थक्कों, रक्त वाहिकाओं में रुकावट या माइक्रोब्लीड्स को स्कैन में पहले ही पहचान लेता है- जिन्हें सामान्य जांच में नजरअंदाज किया जा सकता था।

इस तरह के एआई सक्षम लैब और इमेजिंग मॉडल डॉक्टरों को न केवल बीमारी के प्रारंभिक चरण में पहचानने में मदद करते हैं, बल्कि कई मामलों में स्ट्रोक होने से पहले ही चेतावनी देने में सक्षम हैं।

तेज निदान से बढ़ती बचाव की संभावना

विशेषज्ञों का कहना है कि यदि स्ट्रोक के शुरुआती लक्षणों को पहचान लिया जाए और मरीज “गोल्डन आवर” के भीतर इलाज पाने वाले केंद्र तक पहुंच जाए, तो रिकवरी की संभावना कई गुना बढ़ जाती है। नई तकनीकें जैसे थ्रोम्बोलाइटिक दवाएं, मैकेनिकल थ्रोम्बेक्टोमी और एआई आधारित इमेजिंग ने पिछले एक दशक में स्ट्रोक उपचार को पूरी तरह बदल दिया है।

बचाव के लिए क्या करें?

ब्लड प्रेशर और शुगर पर नियंत्रण रखें

धूम्रपान और शराब से बचें

नियमित व्यायाम करें

नींद और तनाव पर ध्यान दें

प्रदूषण से बचाव के उपाय अपनाएं, खासकर जब वायु गुणवत्ता बेहद खराब हो

स्ट्रोक अब सिर्फ बुजुर्गों का रोग नहीं रह गया है। यह तेज रफ्तार और तनाव भरी जिंदगी जी रहे युवाओं का भी खतरा बन चुका है, लेकिन अच्छी बात यह है कि तकनीक, खासकर एआई आधारित जांच और निवारक प्रणाली, इस चुनौती का समाधान पेश कर रही है। जरूरत है तो बस जागरूकता, समय पर जांच और जीवनशैली में छोटे-छोटे बदलावों की, जो जीवन को स्ट्रोक जैसी गंभीर बीमारी से बचा सकते हैं।

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