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BRICS: डॉलर पर निर्भरता घटाने के एजेंडे पर भारत खोलेगा अपने पत्ते

रूस के कजान शहर में 22 व 23 अक्टूबर को होने वाले ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में रूस और चीन कुछ आर्थिक मुद्दों पर सहमति बनाने का पूरा दबाव बनाए हैं लेकिन भारत ने अब तक अपने पत्ते नहीं खोले हैं। रूस और चीन की कोशिश है कि ब्रिक्स देशों के बीच आपसी कारोबार में डॉलर की भूमिका कम करने को लेकर बड़ी सहमति बने और इस दिशा में किस तरह से आगे बढ़ा जाए, इसका खाका तैयार हो।

गैर-डॉलर में होने वाला वैश्विक कारोबार बढ़े
भारत सैद्धांतिक तौर पर इस बात पर राजी है कि उसका भी गैर-डॉलर में होने वाला वैश्विक कारोबार बढ़े। भारत द्विपक्षीय स्तर पर स्वयं ही कई देशों से इस बारे में बात कर रहा है। लेकिन भारत इस बारे में ब्रिक्स के परचम तले जल्दबाजी में किसी समझौते का समर्थन नहीं करेगा। भारत पूरे सोच-विचार के बाद ही फैसला लेगा। पीएम नरेन्द्र मोदी बुधवार को ब्रिक्स सम्मेलन को जब संबोधित करेंगे तो भारत का यही रुख सामने रखेंगे।

विदेश मंत्रालय का कहना है, ‘रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के आमंत्रण पर पीएम मोदी ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में हिस्सा लेने कजान जाएंगे। इस बार सम्मेलन का थीम-‘न्यायसंगत वैश्विक विकास व सुरक्षा के लिए बहुपक्षीय व्यवस्था को मजबूत करना’ है। इसमें वैश्विक नेताओं को महत्वपूर्ण वैश्विक मुद्दों पर विमर्श करने का अवसर मिलेगा।

ब्रिक्स में ये देश में शामिल
ब्रिक्स के पूर्व में शुरू किए गए अभियानों और भविष्य के संभावित समझौते पर भी विचार होगा। पीएम मोदी यहां दूसरे नेताओं से भी द्विपक्षीय मुलाकात करेंगे।’ इस बैठक में पुतिन के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी चिनफिंग, ब्राजील, दक्षिण अफ्रीका के राष्ट्रपति और ब्रिक्स के नए सदस्य देश ईरान, मिस्त्र, इथीयोपिया, यूएई व सऊदी अरब के शीर्ष नेता भी हिस्सा लेंगे। यह पांच देश पिछले वर्ष ही ब्रिक्स के सदस्य बने हैं। इसमें सऊदी अरब ने अभी पूरी तरह से सदस्यता नहीं ली है।

भारत में रूस के राजदूत डेनिस अलीपोव ने बताया है कि इस बार ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में 40 देशों के नेता हिस्सा लेंगे। सूत्रों का कहना है कि रूस और चीन लगातार कह रहे हैं कि ब्रिक्स को अब वैश्विक मंच पर ज्यादा प्रासंगिक भूमिका निभाने की जरूरत है और इस संगठन को अब भरपूर समर्थन मिल रहा है। दोनों देशों ने कहा कि वैश्विक मंच पर आर्थिक व राजनीतिक गवर्नेंस के तरीके बदलने की शुरुआत ब्रिक्स करे।

भारत अपने दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर ही फैसला लेगा
इस क्रम में स्थानीय मुद्रा में कारोबार को बढ़ावा देने के लिए मौजूदा स्विफ्ट सिस्टम (सोसायटी फार व‌र्ल्डवाइड इंटरबैंक फाइनेंशिएल टेलीकम्यूनिकेशंस-अंतरराष्ट्रीय वित्तीय लेन-देन को सुगम बनाने वाली व्यवस्था) का एक विकल्प बनाने पर फैसला करना होगा। रूस व चीन के अनुसार आगामी बैठक में इसका रोडमैप आना चाहिए। लेकिन सूत्रों का कहना है कि भारत अपने दीर्घकालिक हितों को ध्यान में रखकर ही फैसला लेगा।

भारत सरकार अपने स्तर पर दूसरे देशों के साथ स्थानीय मुद्रा में कारोबार करने को बढ़ावा दे रही है। लेकिन मौजूदा परिवेश में जब चीन-रूस और अमेरिका-पश्चिमी देशों के बीच आर्थिक व राजनीतिक तनाव बढ़ रहा है, तब भारत हर पहलू को ध्यान में रख रहा है।

रूस से तेल खरीदने पर पहले ही विवाद जारी
रूस से तेल खरीदने पर पहले ही अमेरिका व पश्चिमी देशों से भारत का विवाद चल रहा है। अब अमेरिकी डालर के खिलाफ मोर्चा खोले रूस व चीन के साथ भारत यहां जल्दबाजी नहीं करना चाहता। रूस और चीन दोनों ही भारत के लिए बड़े कारोबारी देश हैं और इनके साथ स्थानीय मुद्रा में कारोबार का फायदा भारत को होगा। रूस के साथ भारत ने सीमित स्तर पर ऐसा शुरू भी किया है।

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